Class 12 Economics | Chapter 4 | Money | मुद्रा

                                                                              मुद्रा

कोई भी वह वस्तु है जो सामान्यतः विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है मूल्यों की मापक होती है मूल्यों का संग्रहण तथा सहित भुगतान की मापक होती है I
 
वस्तु विनिमय प्रणाली

 वस्तु विनिमय प्रणाली से अभिप्राय उस प्रणाली से है जिसके अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले वस्तुओं एवं सेवाओं का भुगतान किया जाता है I      उदाहरण 10 किलोग्राम गेहूं के लिए 1 मीटर कपड़ा
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वस्तु विनिमय प्रणाली की सीमाएं 

 आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
                           वस्तु विनिमय प्रणाली तभी कार्य कर सकती है , जब अर्थव्यवस्था में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग पाए जाते हैं अर्थात एक व्यक्ति के पास  गेहूं है और वे जूते खरीदना चाहता है तब उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी होगी जिसके पास जूते हो और वह बेचना चाहता है और साथ ही उससे भी गेहूं की आवश्यकता हो (अर्थात गेहूं खरीदना चाहता है)

 
मूल्य की सर्वमान्य मापक इकाई का  अभाव
                            वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत मूल्य के सर्वमान्य मापक इकाई का अभाव होता है क्योंकि  किसी एक वस्तु के रूप में दूसरे वस्तु के मूल्य का अनुमान लगाना एक मुश्किल कार्य होता है I अतः  मूल्यों के सर्वमान्य मापक इकाई के अभाव में किसी वस्तु के मूल्य का आकलन और नियमित एवं अनियोजित अनुपात में कर  दिया जाता था |

 
स्थगित भुगतान  के मापक इकाई का अभाव
                             वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत स्थापित भुगतानों के मापक इकाई के अभाव  कारण भावी सौदों में कठिनाइयां उत्पन्न होती थी ऐसा इसलिए होता था क्योंकि वस्तुओं का विनिमय भविष्य में किसी तय समय पर होना होता था परंतु उस समय तक या तो वस्तु अपना अस्तित्व खो देती थी अर्थात नष्ट हो जाती थी या उसकी उपयोगिता में कमी जाती थी |

 
मूल्यों  के भंडारण की समस्या
 वस्तु विनिमय प्रणाली में  धन को भविष्य के लिए संग्रहित करना एक कठिन कार्य था क्योंकि अधिकांश वस्तुएं जैसे गेहूं चावल सब्जियां अधिक टिकाऊ नहीं होती तथा  समय के साथ यह अपनी गुणवत्ता और मूल्य को देती है |

 
वस्तुओं की विभाज्यता
                            वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का आदान प्रदान किया जाता है इसकी एक बड़ी समस्या वस्तुओं की विभाज्यता भी है क्योंकि आदान-प्रदान के लिए सभी वस्तुओं का विभाजन संभव नहीं है ऐसी वस्तुएं / या खंडित होने के पश्चात या तो नष्ट हो जाती हैं या अपनी गुणवत्ता और मूल्य को खो देती है उदाहरण के लिए एक मूर्ति जो कि जो की बहुत मूल्यवान है यदि उसको खंडित किया जाए तो वह अपने मूल्य को खो देता है

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मुद्रा के कार्य >>>>>>>>>
विनिमय का माध्यम
                        विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा से अभिप्राय यह है कि सभी प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय विक्रय के लिए भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है मुद्रा के इस कार्य में वस्तु विनिमय प्रणाली की एक प्रमुख समस्या  आवष्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव की समस्या को समाप्त कर दिया |

मूल्य का मापक
मुद्रा एक ऐसी समान इकाई के रूप में कार्य करती है जिस के रूप में सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को व्यक्त किया जा सकता है
द्वितीय कार्य

स्थगित भुगतान का मापक
मुद्रा उन सौदों के लिए मापक के रूप में कार्य करती है जो भविष्य में होने वाले हैं ऐसे सौदों में भुगतान तत्काल नहीं किया जाता मुद्रा के सौदों को प्रोत्साहन देती है जो पूंजी निर्माण और देश के आर्थिक विकास में सहायक होती हैं |

मूल्यों का संग्रहण
  मूल्य के संग्रह के रूप में मुद्रा से अभिप्राय यह है कि मुद्रा का प्रयोग वर्तमान कर सकती को भविष्य के लिए संग्रहित किया जा सकता है यद्यपि धन का संग्रह अन्य माध्यम जैसे वस्तु अथवा धातुओं के रूप में भी किया जा सकता है परंतु मुद्रा सबसे सस्ती तथा सुविधाजनक
माध्यम है |

मुद्रा की आपूर्ति
मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में एक विशेष समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा से है |

मुद्रा आपूर्ति की विशेषताएं
मुद्रा आपूर्ति में केवल जनता के पास उपलब्ध मुद्रा  को शामिल किया जाता है यहां जनता शब्द का अर्थ मुद्रा का प्रयोग करने वाले व्यक्तिगत इकाई जैसे परिवार व्यवसाय फ़र्म  आदि से है |

 मुद्रा आपूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है

मुद्रा आपूर्ति की माप
M1                                   M2                               M3                                      M4
M1 :-  M1
मुद्रा आपूर्ति का सबसे आधारभूत एवं तरल माप है इससे लेनदेन मुद्रा या व्यवहार मुद्रा भी कहा जाता है
                           M1  =  जनता के पास करेंसी + व्यापारिक बैंकों की जमाएं  + RBI की अन्य जमाई
M1  के मुख्य बिंदु
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M1 में  जनता के पास करेंसी सिक्के  10 ,5 ,2 तथा 2000, 500, 100  इत्यादि के नोटों को शामिल किया जाता है
>>>करेंसी को आदेश मुद्रा भी कहा जाता है क्योंकि इसका प्रयोग ऋण के भुगतान अथवा अन्य दायित्व भुगतान के लिए कानूनी तौर पर उपयोग किया जाता है
>>>व्यापारिक बैंकों की मांग जमाएं इस से अभिप्राय व्यापारिक बैंकों के पास जनता की मांग जमाओं से है जिन्हें चेक जारी करके नगद के रूप में प्राप्त किया जा सकता है यह केवल शुद्ध मांग जमाओं को शामिल  करती है अर्थात अंतर बैंक जमा तथा
 
सावधिक जमा है इसमें शामिल नहीं की जाती
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RBI 
की अन्य जमाएं
  विदेशी बैंको सरकारी सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों एवं विश्व बैंक इत्यादि द्वारा आरबीआई के पास रखी जमाएं RBI की अन्य जमाएं कहलाती है
RBI 
के पास अन्य जमाओं का योगदान एवं वन में अत्यधिक छोटा होता है एवं मौद्रिक नीति का निर्धारण में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाती है
M2 , M1 की अपेक्षा मुद्रा आपूर्ति की विस्तृत विस्तृत अवधारणा है इसमें M1 के अतिरिक्त डाकघर की बचत बैंक खातों को सम्मिलित किया जाता है
                                  M2 = M1+ 
डाकघर बचत बैंक के बचत खाते
                       Note:-  डाकघर बचत बैंक खाते चेक द्वारा आहरण नहीं होते हैं
x
M3 :- M3 , M1
की अपेक्षा अधिक विस्तृत है I  M3 के अंतर्गत M1 के साथ बैंकों की शुद्ध सावधिक जमाएं शामिल की जाती है
                           M3 = M1 +
बैंकों के पास शुद्ध सावधिक जमाएं
सावधिक जमाए  जिन्हें एक निश्चित समय अवधि के पश्चात ही निकाला जा सकता है ऐसी जमाO पर ब्याज की दर अधिक होती है
M4 :-  M4
के अंतर्गत M1 के अतिरिक्त डाकघर की बचत बैंक की जमाएं  भी शामिल की जाती है अतः इसमें M1 के अतिरिक्त बैंक के पास  सावधिक जमा  तथा डाकघर बचत बैंक की कुल जमाe ( NSE को छोड़कर सभी शामिल की जाती है )
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