प्रबंध के सिद्धांत
टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत
टेलर का परिचय
टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत
टेलर का परिचय
- FW टेलर (1856-1915) मिडिवल स्टील वर्क्स में कम समय में एक मशीन मैन की मुख्य अभियंता के पद तक पहुंच l उन्होंने यह जाना कि कर्मचारी अपनी क्षमता से कम कार्य कर रहे हैं तथा दोनों पक्षों प्रबंधकों एवं श्रमिकों की एक दूसरे के प्रति नकारात्मक सोच है l इसलिए विभिन्न प्रयोगों के आधार पर उन्होंने वैज्ञानिक प्रबंध को विकसित किया उन्होंने अनूठे नियम को अपनाने के बजाय वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित नियमों पर बल दिया l इसलिए उन्हें वैज्ञानिक प्रबंध का जनक माना जाता है l
वैज्ञानिक प्रबंध कर्मचारियों से सर्वोत्तम कार्य न्यूनतम लागत पर करवाने के तरीके को जानने की कला है l
वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत/ एफ डब्ल्यू टेलर का वैज्ञानिक सिद्धांत
1. विज्ञान न की अंगूठा टेक शासन
1. विज्ञान न की अंगूठा टेक शासन
- इस सिद्धांत के अनुसार निर्णय तत्वों के आधार तथ्यों पर आधारित होने चाहिए ना कि अंगूठा टेक नियमों के आधार पर संगठन में किए जाने वाले प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक जांच के आधार पर होना चाहिए ना कि अंतदृष्टि व निजी विचार पर l
2. सहयोग न कि टकराव
- इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंध एवं श्रमिकों में विश्वास एवं समझदारी होनी चाहिए l उन्हें एक दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करनी चाहिए जिससे वह एक टीम के रूप में कार्य कर सकें l
3. मानसिक क्रांति
- इसके द्वारा श्रमिकों व प्रबंधक को को एक दूसरे के प्रति सोच को बदलने पर जोर दिया गया है l जिससे संगठन में परस्पर विश्वास की भावना उत्पन्न हो सके तथा उत्पादन को बढ़ाया जा सके l दोनों पक्षों के लाभ के बंटवारे की अपेक्षा लाभ में वृद्धि की बात सोचनी चाहिए l
4. सहयोग ना की व्यक्तिवाद
- सिद्धांत मधुरता ना कि विवाद का संशोधित रूप है lइसके अनुसार संगठन में श्रमिकों एवं प्रबंधकों के बीच सहयोग होना चाहिए जिससे कार्य को सरलता से किया जा सके l
5. अधिकतम कार्य क्षमता एवं श्रमिकों का विकास
- टेलर के अनुसार श्रमिकों का चयन कार्य क्षमता के अनुसार कार्य एवं योग्यता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए तथा उनकी कार्य क्षमता एवं कुशलता बढ़ाने हेतु उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए इससे कंपनी एवं श्रमिकों की खुशhali बढ़ेगी तथा kushal shramik ke sath सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति में सरलता होगी l
विज्ञानिक प्रबंध की तकनीके |
1. क्रियात्मक फॉरमैनशिप
1. क्रियात्मक फॉरमैनशिप
- क्रियात्मक फॉरमैनशिप का उद्देश्य विशेषज्ञ फोरमैन नियुक्त करके श्रमिकों के पर्यवेक्षण की गुणवक्ता बढ़ाना है l नियोजन को निष्पादन से अलग रखना चाहिए तथा नियंत्रण हेतु 8 फोरमैन होने चाहिए जिनमें से चार नियोजन विभाग तथा चार उत्पादन विभाग के अधीन होने चाहिए | इन सभी के द्वारा प्रत्येक श्रमिक का पर्यवेक्षण करना चाहिए जिससे श्रमिकों के कार्य की गुणवत्ता बढ़ सके l
क . नियोजन विभाग
- निर्देश कार्ड क्लर्क :- कार्य के साधारण अनुदेशकों को देने के लिए उत्तरदाई है
- कार्यक्रम मार्ग क्लर्क:- कार्य को करने के लिए चरणों के क्रम को निश्चित करता है|
- समय एवं लागत क्लर्क:- कार्य के समय तथा लागत को निर्धारित करता है l
- अनुशासक :-अनुशासन, व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से कार्य के निष्पादन के लिए उत्तरदाई है l
ख. उत्पादन विभाग
- गति नायक :- कार्य के समय पर पूरा होने को सुनिश्चित करता है |
- टोली नायक:- सभी मशीनों उपकरणों और दूसरी संसाधनों की व्यवस्था करता है l
- मरम्मत नायक:- मशीनों एवं उपकरणों को कार्य करने की स्थिति में रखता है l
- निरीक्षक :- उत्पादन के गुणवत्ता नियंत्रण का निरीक्षण करता है l
कार्य के मानकीकरण का आशय मानक उपकरणों विधियों प्रक्रियाओं को अपनाने तथा आकार-प्रकार गुण वचन माओवादी को निर्धारित करने से है l के संसाधनों की बर्बादी कम होती है तथा कार्य की गुणवत्ता बढ़ती है l कार्य को उत्पाद की अनावश्यक विविधताओं को समाप्त करके सरल बनाया जा सकता है l
3. विधि अध्ययन
विधि अध्ययन एक कार्य को करने की विधियों से संबंधित होता है l इसके अंतर्गत उत्पादन की संपूर्ण प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है जिससे कार्य को करने की सर्वोत्तम विधि का पता लगाया जा सके l
4. गति अध्ययन
इसके अंतर्गत श्रमिकों की गतियों का अध्ययन किया जाता है l ताकि अनावश्यक गलतियों को कम करके समय की बर्बादी को रोका जाए तथा कार्य क्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सके l
5. समय अध्ययन
यह तकनीक कार्य को करने में लगने वाली मानक समय का निर्धारण करती है इसका उद्देश्य श्रम लागत का अनुमान लगाना वांछित श्रमिकों की संख्या का निर्धारित करना एवं उपयुक्त प्रेरणा योजना का निर्धारण करना है l
6. थकान अध्ययन
इस सिद्धांत के अंतर्गत यह तय किया जाता है कि मध्यान तक कितनी बार एवं कितने समय के लिए होता है कि कर्मचारी उचित प्रकार से और अधिक कुशलता से कार्य कर सकें l
7. विभेदात्मक मजदूरी प्रणाली
यह मजदूरी भुगतान की ऐसी विधि है जिसमें श्रमिकों को उनकी कार्य क्षमता के अनुसार भुगतान किया जाता है मानक स्तर से अधिक कार्य करने वाले श्रमिकों को अधिक तथा मानक स्तर से कम कार्य करने वाले को श्रमिकों को कम पारिश्रमिक दिया जाता है l
उदाहरण :-
मानक कार्य 10 इकाइयां
मजदूरी ₹50 प्रति इकाई जो 10 या ज्यादा इकाइयों का उत्पादन करें तथा रुपए 40 प्रति इकाई जो 10 से कम इकाइयों का उत्पादन करें |
मानक कार्य 10 इकाइयां
मजदूरी ₹50 प्रति इकाई जो 10 या ज्यादा इकाइयों का उत्पादन करें तथा रुपए 40 प्रति इकाई जो 10 से कम इकाइयों का उत्पादन करें |
श्रमिक A ने 11 इकाइयों का उत्पादन किया उसे ₹550 (50x10) मजदूरी प्राप्त होगी
श्रमिक B ने 9 इकाइयों का उत्पादन किया है उसे ₹360(40x9) मजदूरी प्राप्त होगी परिणाम स्वरुप अकुशल मजदूर भी कार अधिक कार्य के लिए अभिप्रेरित होंगे l
टेलर तथा फेयोल के योगदान का तुलनात्मक अध्ययन
- टेलर तथा फेयोल दोनों ही प्रत्येक कार्य के व्यवहारिक पक्षों पर बल देते हैं |
- दोनों प्रबंध तथा श्रमिकों के बीच अच्छे संबंध पर बल देते हैं |
- दोनों के सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य कुशलता को अधिकतम करना है |
- दोनों व्यक्तिगत हित की वजह संगठनात्मक हित को अधिक महत्व देते हैं l
टेलर तथा फेयोल के अध्ययन में अंतर
Thank you so much for imp notes
ReplyDeleteThank for given tha answer
ReplyDelete